मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

bhugol 12th class

मानव भूगोल : प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

मानव भूगोल के विषय क्षेत्र पर टिप्पणी लिखिए ।

जिस प्रकार अर्थशास्त्र का संबंध मूल्य आदि से तथा भूगर्भ शास्त्र का संबंध शैलों से रहता हैं । उसी प्रकार भूगोल का केंद्र बिन्दु स्थान हैं । जिसमें कहाँ और कैसे जैसे प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया जाता हैं । मानव भूगोल का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत हैं । परंतु कई विद्वानों के विचार में मतभेद हैं । मानव भूगोल को भूमि का विज्ञान से अंर्तसंबंधों का विज्ञान तथा प्रादेशिक अध्ययन का विज्ञान कहा जाता हैं । वास्तव में भौगोलिक परिस्थितियाँ और मनुष्य के कार्यों के संबंध का वितरण और प्रकृति ही मानव प्रजातियाँ विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या का वितरण घनत्व विकाश वृद्धि के लक्षण जन स्थानांतरण आदि के संबंध में ज्ञान प्राप्त किया जाता हैं । इसके साथ ही मानव समूहों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता हैं ।

  1. मानव के प्रकृतिकरण की व्याख्या करें ।

मनुष्य अपने भौतिक पर्यावरण के साथ तकनीक ज्ञान की सहायता से पारस्परिक संबंध रखता हैं । यह इतना महत्वपूर्ण नहीं हैं की मनुष्य ने क्या उत्पन्न किया हैं लेकिन यह महत्वपूर्ण है की usने किन उपकरण और तकनीक की सहायता से उत्पन्न किया हैं । तकनीक सांस्कृतिक विकास की ओर संकेत करती है। प्राकृतिक नियमों को समझने के बाद ही मानव ने तकनीक का विकाश किया है । जिस प्रकार पत्थर के टुकड़े के घर्षण से आग उत्पन्न किया है उसी प्रकार डी.एन.ए की जानकारी से बहुत सी बीमारियों का पता चला । हम जानते है की प्रकृति के बारें में जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । जिसमें तकनीक और प्रौधोगिकी का विकास होता हैं । जिसमें मनुष्य की पर्यावरणीय बेड़िया ढीली होती हैं । प्रारम्भिक अवस्था में मनुष्य पर्यावरण से बहुत ही प्रभावित था । एक प्रकार से वह प्रकृति का दास कहलाता था । प्रकृति के अनुसार ही वह अपने को बनाता था । क्योंकि उस समय तकनीक का ज्ञान बहुत ही कम था या फिर न के बराबर था , तथा मानव समाज विकाश भी निम्न था । आदि मानव तथा प्रकृति की शक्तियों को पर्यावरणीय नियतिवाद कहा जाता है। यही मनुष्य का प्रकृतिकरण था ।

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में मानव भूगोल और अधिक समन्वयकारी और अंतर विषयक विषय कैसे बन गया है ? व्याख्या करें ।

मानव भूगोल की विषय वस्तु समय के साथ वृद्धि एवं विकास हुआ हैं । बीसवीं सदी के आरंभ में सांस्कृतिक एवं आर्थिक पक्षों पर विशेष ध्यान दिया जाता था । किन्तु कालांतर में नई चुनौती के लिए नई शाखाओं का उदय हुआ । इसके अध्ययन में नए घटकों का हुआ है वो निम्नलिखित हैं :-

  1. राजनैतिक एवं सामरिक आयाम
  2. सामाजिक योग्यता एवं प्रासंगिकता
  3. स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुविधाएं
  4. लिंग असमानता और जन-सुविधाएं
  5. लिंग असमानता और जन-सुविधाएं एवं जन-नीति आदि विषय इसके अंतर्गत समाहित हैं ।

मानव भूगोल अब व्यवहार में न केवल अधिक एकीकृत एवं अंतरविषयक बन गया है बल्कि इसके अध्ययन में नई विधियों एवं अवधारणाओं का समावेश हुआ है । अब मानव भूगोल दूसरे सामाजिक विज्ञानों को भी आवश्यक स्थानिक विचारणीय विषय संबंधी तथ्यों में सहयोग देता है जिनकी उनको कमी थी । इसके साथ ही मानव भूगोल विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों के विश्लेषण हेतु अन्य सामाजिक विज्ञानों में भी सहयोग लेता है । मानव भूगोल के उपक्षेत्र के रूप में पहचाने जाने वाले ये सामाजिक विज्ञान, आर्थिक भूगोल और सामाजिक भूगोल आदि है ।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात मानव भूगोल ने मानव समाज की समकालीन समस्याओं तथा चुनौतियों के समाधान प्रस्तुत किए । इस कथन की विवेचना कीजिए ।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शैक्षणिक जगत समेत अनेक क्षेत्रों में तेजी से विकास हुआ । सामान्य रूप से भूगोल में और विशेष रूप से मानव भूगोल ने मानव समाज की समकालीन समस्याओं और मुद्दों के समाधान प्रस्तुत किए । ये समस्याएं मानव कल्याण से संबंधित नई समस्याएं है जैसे गरीबी, सामाजिक एवं प्रादेशिक असमानता , समाज कल्याण तथा महिला सशक्तिकरण आदि इसन समस्याओं को समझने तहत इनका निराकरण करने के तरीके सुझाने में पारस्परिक विधियाँ असार्थ थी। इसके परिणामस्वरूप समय-समय पर मानव भूगोल के अध्ययन में नई विधियों का का समावेश किया गया । उदाहरण के लिए पचास के दशक में प्रत्यक्ष वाद की नई विचार धार का उदय हुआ । इसने विभिन्न कारकों के भौतिक कारकों के भौगोलिक प्रतिरूपों के अध्ययन के समय के विश्लेषण को अधिक वस्तुनिष्ठ बनने के लिए मात्रात्मक विधिओं के उपयोग पर बल दिया । इसके पश्चात प्रतिरोध स्वरूप नई विचार धार का जन्म हुआ । इसे व्यवहारगत विचारधारा का नाम दिया गया । इस विचार धार में मानव की शक्ति को अधिक बल दिया गया । विश्व के कुछ भागों में पूंजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण मानव भूगोल में कल्याण परक विचारधारा का जन्म हुआ । इसके अंतर्गत सामाजिक असमानता व निर्धनता जैसी विषयों को जोड़ा गया । मानव भोगोल में मानवतावाद नई विचारधारा हैं । जिसमें मानव जागृति , मानव संसाधन तथा चेतन आदि विषयों पर बल दिया गया ।

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